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Friday, October 4, 2013

सिलसिला .....



सिलसिला  वफाओ का एक नया ही चलाया मैंने...


सिलसिला  वफाओ का एक नया ही चलाया मैंने ,

न उसे याद ही रखा न ही भुलाया मैंने,

हंसी उतार कर चेहरे से फ़ेंक दी लेकिन , 

फिकर-ए-यार मैं कोई अश्क नहीं  बहाया मैंने ,

दर्द तो था मगर खुद को बहुत संभाले रखा ,

मेरी वफ़ा को हर हाल मैं निभाया मैंने ,

लाख सुलगती रही ज़माने की आग मगर ,

तेरे किरदार पे कोई इल्जाम नहीं लगाया मैंने ,

रंग तो और भी जमाने में बहुत थे लेकिन,

नया ख्वाब अपनी आँखों को नहीं दिखाया मैंने, 

मिली  वो राह में तो एक पल के लिएरुकी तो मगर,

हाल न उसने ही पूछा न ही बताया मैंने,

अपनी ही मांगी हुई दुआओं से मुँह मोड़ लिया,

खुद अपने ही जज्बातों को कर दिया पराया मैंने,

धूप निकली है मुझे ढूढनें तो छुपना कैसा,

बस ये ही सोच कर खुद छोड़ दिया साया मैंने,

राज ही रही मेरी मोहब्बत जिंदगी भर,

और सबको राज ही बताया मैंने 

.............  चारुम
 

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर जज्बातों से लबरेज़ प्रस्तुति वाह इस को ग़ज़ल की बह्र में साधा होता तो सोने पे सुहागा होता ,बहरहाल बहुत बहुत बधाई चारू जी को और रितेश जी आपको ,ये रचना साझा करने के लिए ,आपके ब्लॉग को फोलो कर लिया है अब आप मेरे ब्लॉग के अग्रीगेटर पर हैं मंगलवार को चर्चामंच में चर्चा करुँगी http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in/ ये मेरा ब्लॉग है कभी पधारें आपका स्वागत है वहां

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    1. राजेश कुमारी जी कोशिश करुँगी के इस से बहतर लिख पाव बस आप का आशीर्वाद बना रहे .शुक्रिया

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  2. धन्यवाद राजेश कुमारी जी....... इस प्रविष्टि को अपने चर्चा मंच पर लाने के लिए.....

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  3. वह ... सुन्दर भावपूर्ण कविता है ... गहरे एहसास लिए ...

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