सिलसिला वफाओ का एक नया ही चलाया मैंने ,
न उसे याद ही रखा न ही भुलाया मैंने,
हंसी उतार कर चेहरे से फ़ेंक दी लेकिन ,
फिकर-ए-यार मैं कोई अश्क नहीं बहाया मैंने ,
दर्द तो था मगर खुद को बहुत संभाले रखा ,
मेरी वफ़ा को हर हाल मैं निभाया मैंने ,
लाख सुलगती रही ज़माने की आग मगर ,
तेरे किरदार पे कोई इल्जाम नहीं लगाया मैंने ,
रंग तो और भी जमाने में बहुत थे लेकिन,
नया ख्वाब अपनी आँखों को नहीं दिखाया मैंने,
मिली वो राह में तो एक पल के लिएरुकी तो मगर,
हाल न उसने ही पूछा न ही बताया मैंने,
अपनी ही मांगी हुई दुआओं से मुँह मोड़ लिया,
खुद अपने ही जज्बातों को कर दिया पराया मैंने,
धूप निकली है मुझे ढूढनें तो छुपना कैसा,
बस ये ही सोच कर खुद छोड़ दिया साया मैंने,
राज ही रही मेरी मोहब्बत जिंदगी भर,
और सबको राज ही बताया मैंने
............. चारुम
thnx a lot ritesh bhiya
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जज्बातों से लबरेज़ प्रस्तुति वाह इस को ग़ज़ल की बह्र में साधा होता तो सोने पे सुहागा होता ,बहरहाल बहुत बहुत बधाई चारू जी को और रितेश जी आपको ,ये रचना साझा करने के लिए ,आपके ब्लॉग को फोलो कर लिया है अब आप मेरे ब्लॉग के अग्रीगेटर पर हैं मंगलवार को चर्चामंच में चर्चा करुँगी http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in/ ये मेरा ब्लॉग है कभी पधारें आपका स्वागत है वहां
ReplyDeleteराजेश कुमारी जी कोशिश करुँगी के इस से बहतर लिख पाव बस आप का आशीर्वाद बना रहे .शुक्रिया
Deleteसुन्दर रचना और प्रस्तुति।। धन्यवाद।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : एलोवेरा (घृतकुमारी) के लाभ और गुण।
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शुक्रिया
Deleteशुक्रिया
ReplyDeleteधन्यवाद राजेश कुमारी जी....... इस प्रविष्टि को अपने चर्चा मंच पर लाने के लिए.....
ReplyDeleteवह ... सुन्दर भावपूर्ण कविता है ... गहरे एहसास लिए ...
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDeletebahut khoob!
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