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Wednesday, January 6, 2016

ये जिन्दगी.....

  ये जिन्दगी ......

बेखबर ,बेसबर, बेबाक ये जिन्दगी 
हंसती ना हंसाती ये जिन्दगी
चिराग नही जिसे जला दूं,
दुबारा हाथो से फिसल जाती ये जिन्दगी

रूठती क्यों है , किस बात से ,
समझाती नही मुझे ये जिन्दगी
पहलू मे सूरज ,चांद लिए हुए ,
तारो सी क्यों टूट जाती है ये जिन्दगी

ख्वाहिशो का खजाना लिए हुए ,
क्यों खाली हाथ जाती ये जिन्दगी
लुटेरे लूट ना सके, जिसको कभी कीमती हो के भी ,
बेकार जाती ये जिन्दगी

कीमती न हो के भी बिकती ,
कौडी के दाम ना आती ये जिन्दगी
किसी फकीर ने हंस के कहा ,
धूल है, धूल सी उड़ जाती ये जिन्दगी

 .......चारुम

5 comments:

  1. आप कविता भी लिखते हैं

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  2. बिल्कुल सही कहा है आपने...मिस्र में समुद्र तट पर औंधे मुंह पड़ी जिंदगी से मेरे भी चंद सवाल थे..जो मेरी पोस्ट पर है....

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  3. You have lots of great content that is helpful to gain more knowledge. Best wishes.

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