ये जिन्दगी ......
बेखबर ,बेसबर, बेबाक ये जिन्दगी
हंसती ना हंसाती ये जिन्दगी ।
चिराग नही जिसे जला दूं,
दुबारा
हाथो से फिसल जाती ये जिन्दगी ।
रूठती क्यों है , किस बात से ,
समझाती नही मुझे ये जिन्दगी ।
पहलू मे सूरज ,चांद लिए हुए ,
तारो सी क्यों टूट जाती है ये जिन्दगी ।
ख्वाहिशो का खजाना लिए हुए ,
क्यों खाली हाथ जाती ये जिन्दगी ।
लुटेरे लूट ना सके, जिसको कभी
कीमती हो के भी ,
बेकार जाती ये जिन्दगी ।
कीमती न हो के भी बिकती ,
कौडी के दाम ना आती ये जिन्दगी ।
किसी फकीर ने हंस के कहा ,
धूल है, धूल सी उड़ जाती ये जिन्दगी ।
.......चारुम
आप कविता भी लिखते हैं
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08.01.2016) को " क्या हो जीने का लक्ष्य" (चर्चा -2215) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, सादर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दरा
ReplyDeletesundar prastuti shubhkaamnaye
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है आपने...मिस्र में समुद्र तट पर औंधे मुंह पड़ी जिंदगी से मेरे भी चंद सवाल थे..जो मेरी पोस्ट पर है....
ReplyDeleteYou have lots of great content that is helpful to gain more knowledge. Best wishes.
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